चंद्रिका में छिपी कृष्‍णा

 कभी उन बादलों की ओर ध्यान गया है, जो घने और गहरे नीले रंग के होते है, जिनसे ऊंचे पहाड़ों की छवि छुप जाती है, जो मन को कभी अशांत कर देते है। मैंने उन पर ध्यान दिया है, किंतु आज जिस पर मेरी नजर गई वह यह बादलों की सेना नहीं बल्कि उनके बीच से निकल कर आ रहे चमकते सूरज की रोशनी है।

कितना अद्भुत होता है ना जब कभी-कभी आपका हृदय अंधेरे विचारों को छोड़ स्वयं ही सकारात्मकता चुन लेता है? काश ऐसा आजीवन काल के लिए होता। बुराइयां आप को हिला नहीं पाती क्योंकि आपका हृदय उन्हें चुनना ही नहीं जानता। परंतु अफसोस ऐसा नहीं है... अपेक्षा से परे, यह सरफिरा दिमाग हमेशा नकारात्मकता ही चुनता है।

एक नामचीन कवि ने अपनी प्रेमिका, अपनी मृत पत्नी से प्रेरित एक कविता में कुछ ऐसी पंक्तियां लिखी थी :

प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्‍णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्‍णा है।


यहां वह स्वयं को, और बाकी सारें विलापियों को एक संदेश देना चाहते हैं, कि चंद्रिका की काली रात अर्थात दुख के बाद कहीं से छिप के एक रोशनी भरा खुशी का पल भी आ जाता है, और ना भी आए तो कहीं दूर हमारा इंतजार कर रहा होता है ताकि हम मुश्किलों का सामना कर उस तक पहुंच जाएंगे। परिधीय दृष्टि में वह चमकती सकारात्मकता की किरण होती जरूर है किंतु धुंधली इतनी होती है कि मानव को भरोसा दिला दे, कि अंत करीब है। लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता।

धूप की किरणें वह हर्ष है जो कभी-कभी घने बादल स्वरूप मनहूसियत का प्रतिनिधि बनकर जमीन रूपी जिंदगी पर छा जाता हैं। इससे हमें पता चलता है कि हम आने वाले कल को नहीं जानते, न ही जानते हैं कि वह अपने साथ क्या लाएंगे, इसलिए वर्तमान में रहकर उसकी ओर ध्यान देना चाहिए।

इन गहरे नीले बादलों का भी कुछ कह नहीं सकते। क्या पता यह बाहर से ही एसे दिखते हो? आखिर किसी पुस्तक को उसके आवरण से नहीं आंकना चाहिए।

ऐसी तो अनगिनत संभावनाएं हैं और अगर इन्हीं को गिनने बैठ गए तो समय की बर्बादी ही नहीं बल्कि मन की भी अशांति भी होगी। तो बेहतर होगा अगर चैन की सांस लेकर आराम से कदम आगे बढ़ाए क्योंकि सब्र का फल मीठा होता है।



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